| नाही मी पण आनंदी.. |
| येऊन तुझ्या पासुन दुर... |
| नाही विसरलो तुला अजुन.. |
| वाहतोय डोळ्यातून अश्रुंचा पुर.. |
| मी केलेल्या गुन्ह्याची.. |
| शिक्षा मी दिली तुला... |
| वरवर असे दिसले तरी... |
| त्याच्या मलाच बसतात कळा... |
| सारा खेळचं नशिबाचा.. |
| त्या पुढे काय करणार हा पामर.. |
| तू असो किवा मी... |
| दोघेही त्याचे चाकर... |
| डोळ्यांनी पाहीलेले स्वप्न... |
| स्वत:च्या हाताने उद्धवस्त केले.. |
| सजवलेले घरकूल आपले.. |
| मी सारे नष्ट केले... |
| न राहून सांगावेसे वाटतेय.. |
| यात दोष ना कूणाचा... |
| कुणाला ही दोष दिला तरी.. |
| सारा हा खेळ नशीबाचा.. |
| ©*मंथन*™.. २८/०५/२०१२ रात्री ११.४० |
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